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स्कूल चले हम

"इल्म हासिल करने के लिए चीन भी जाना पड़े तो जाओ" कहा से शुरू करू कहा से नहीं कुछ समाज नहीं आ रहा. करीब करीब सभी राज्यों में स्कूल शुरू हो गए है एक तरफ बच्चो में ख़ुशी है तो दूसरी तरफ अभिभावक को मनो बहुत सुकून मिल गया लेकिन यह ख़ुशी स्कूल जाने पर काफूर हो गयी जब स्कूल मैनेजमेंट की तरफ से पिछला बकाया और इस साल का हिसाब जोड़ कर परचा हाथ में दिया गया ओर  तो ओर  जब माननीय कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया . Covid 19 से पहेले हम मंदी की मार झेल रहे थे और फिर पिछले दो साल काम के क्या हालत है किसी से नहीं छिपे है.अब सभी को गवर्नमेंट स्कूल सही लग रहे है पहेले याद नहीं आया जब स्टेटस दिखाने के लिए होडा होड़ में इंग्लिश मध्यम में दाखिला दिलवाया. और अब गुरुकुल, मदरसा और आश्रम की बाते करने लगे है "का वर्षा जब कृषि सुखाने"                  स्कूल की कुछ अपनी मजबूरियां भी है टीचर्स की सैलरी, बैंक की किस्त, रखरखाव इत्यादि पर दूसरी ओर क्या टीचर्स को भी 85% सैलरी दी गई. जिस तरह से Covid  से पहले स्कूल चल रहे थे क्या उसी तरह से इनका खर्चा चल रहा था ?  जिस तरह सरकार चाहे वह केंद्र सरकार हो या राज्य
हाल की पोस्ट

दिलीप साहब (11 दिसंबर 1922, 7 जुलाई 2021)

' हमारे बाद इस महफिल में अफ़साने बयां होंगे, बहारें हमको ढूंढेंगी न जाने हम कहां होंगे ' दिलीप साहब द्वारा कहा गया यह शेर बिल्कुल सही है क्योंकि  'किसी के आने या जाने से जिंदगी नहीं रुकती बस जीने का अंदाज बदल जाता है' और दे जाता है एक खालीपन का एहसास जो कभी नहीं भरता ।  दिलीप कुमार  या युसूफ खान 'नाम में क्या रखा है' शेक्सपियर ने कहा था।  सही भी है क्योंकि अगर गुलाब को किसी और नाम से पुकारे तो क्या इतनी खुशबू नहीं देगा ? दिलीप कुमार का बचपन का नाम मुहम्मद  यूसुफ खान था। 11 दिसंबर 1922 को पेशावर मैं पैदा हुए जो कि उस वक्त हमारे मुल्क का हिस्सा था आखिरी सांसे 7 जुलाई 2021 को शहंशाह ए जज्बात ने मुंबई  के हिंदुजा हॉस्पिटल में ली ली और हम सब को छोड़ कर अपने रब ए हकीकी से जा मिले 'इन्ना लिलाहि वा इन्ना इलेहि राजेउन'  अपनी उम्र के सेंचुरी के  सिर्फ 2 वर्ष पहले यानी 98 की उम्र में चले गए ठीक उसी तरह जिस तरह सर डॉन ब्रैडमैन अपनी आखिरी पारी में जीरो पर आउट हो गए  'कुल्लू नफसीन जैकतुल मौत' यानी हर नक्श को मौत का मजा चखना है ना एक सेकंड पहले ना एक सेकंड बा

जिंदाबाद जिंदाबाद

  जिंदाबाद जिंदाबाद  हालात जब भी अपने सुर ताल बदलते है... नाती नवाब के भी ननिहाल बदलते है...!! नेताओ का बदलना पार्टी , नया नहीं है साँपो में रवायत, वो खाल बदलते है.....!!                                                                                                               'अस्तित्व अंकुर'  आज के नेताओ को देख कर कुछ भी लिख दो, बोल दो, सुना दो कुछ फर्क नहीं पड़ता पता है क्यों कि करीब करीब सभी लोगो में यह सोच बना राखी  है कि पॉलिटिक्स में सब जायज है. इस सब के जिम्मेदार हम लोग ही  हे क्यों कि सिर्फ कहने के लिए बात कही जाती  है कि चुनाव में जातिवाद नहीं होगा, धर्म, भाई भतीजावाद नहीं होगा पर हम सब क्या करते है अपने चहेतों को टिकट दिलाने या मिलने पर किसको चुनते है या सपोर्ट करते है  फिर उम्मीद गरीबी हटाने कि या विकास की करते है यह दो नारे का जिक्र करुगा जो हमारे देश में काफी लोकप्रिय हुई एक  तो इंद्रा गाँधी जी (Iron LAdy) के वक़्त में "गरीबी हटाओ" और दूसरा आज के दौर में विकास और विकास (सबका साथ सबका विकास).लोग बातो में आ गए और  लोगो ने समझा गरीबी  दूर हो जाएगी और आज तक

"पत्रकार या सरकारी प्रवक्ता"

                                                        "पत्रकार या सरकारी प्रवक्ता" मैंने कही पढा था कि गणेश शंकर विधार्थी जोकि एक पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी थे कि जनता की भलाई के लिए  पत्रकार को हमेशा सरकार के विपक्ष में होना चाहिए.   जब  पत्रकार विपक्ष के रोल  में होता है तो वह  सरकार के हर गलत और जनता विरोधी काम में सवाल खड़े करता है जिससे सरकार को जनता हित में फैसला करना पड़ता है. आज हमारे देश में जो  पत्रकार  है असल में वो  पत्रकार नहीं बल्कि अघोषित रूप से सरकार और सत्ताधारी दल के प्रवकत्ता है. आज हमारे देश के  पत्रकार सरकार से नहीं विपक्ष से सवाल करते है. वो हर उस व्यक्ति को देशदोर्ही और टुकड़े टुकड़े गेंग का सद्स्य घोषित कर देते है. जो सरकार से सवाल पूछता है.  इन्ही सब वजहों से निष्पक्ष पत्रकारिता में दुनिया के 180 देशों में हमारे देश की मीडिया का 142 वा  स्थान है.  मेरा  ऐ सा मानना है कि देश में तानाशाही को रोकने के लिए सरकार का विरोध करने से पहले देशवासियो को मीडिया के खिलाफ आन्दोलन करने की जरुरत है. जब तक देश का मीडिया सत्ता की दलाली नहीं छोड़ेगा तब तक देश में जनता के

नगर निगम चुनाव, 2020 (राजस्थान ) जोधपुर, कोटा और जयपुर

                                  नगर निगम चुनाव, 2020                                         जोधपुर कोटा जयपुर                                                   ‘आज का वोटर’ ‘यह पब्लिक सब जानती है’ हमारे यहाँ नगर निगम चुनाव का रंग अपने चरम पर पहुच रहा है जोकि दो चरण में होने जा रहा है 29 october और november 1, 2020. वोटर मोटे तोर पर दो पार्टियों में बटा दिख रहा है BJP और Congress. वेसे इस बार निर्दलीय भी मुकाबले में है हर बार होते है इस बार जायदा है हो भी क्यों ना बड़े नेता अपने चहेतों ticket देना या फिर साथ वाले का ऊपर चड़ना या फिर पुरानी आदवत निकला कुछ भी हो सकता है वेसे इन So Called बागियों के जितने पर ना पार्टी को इनमे शामिल करने में एतराज़ होगा ना इन्हें फिर से पार्टी join करने में जो कल तक एक दुसरे को बुरा भला कह रहे थे. शायद इसे ‘घर वापसी कहते है’ वोटर सब जनता है फिर इन्हें क्यों गाली देता है ? चुन तो वोटर रहा है ना क्या हम सेन्टर पॉलिटिक्स को नहीं नहीं देखते जो वहा होता है वही यहाँ भी होता है, किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है सिर्फ Seat (सत्ता) से मतलब है केसे भी मिले इसमे

आपदा में अवसर...!

"चमक सूरज की नहीं मेरे किरदार की है,  खबर ये आसमाँ के अखबार की है, मैं चलूँ तो मेरे संग कारवाँ चले,  बात गुरूर की नहीं, ऐतबार की है।" हमारे PM ने पिछले महीने ICC के कार्यक्रम में कहा आपदा को अवसर में बदलना है होना भी चाहिए कब तक हम रोते रहेगें. आत्म - निर्भर तो बनना होगा । कब तक हम विदेशो की और देखते रहेंगे यही मौका है और कम  था तो चीन की नापाक हरकत ने अब हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है आज भी हमारा चीन के साथ Export  25% और Import 75% है क़रीब, यानी हम कितने  आत्म निर्भर यह भी हमें मालूम है जंग किसी भी समस्या का समाधान नही है यह भी हम सब जानते है. पर साथ ही साथ हमें यह भी देखना होगा कि ban किन किन प्रोडक्ट्स पर और कैसा होगा ?  Chinese इन्वेस्टमेंट का क्या होगा ?  वेसे हमारी सरकार ने पिछले दिनों इस ओर शुरुआत कर चीन के 59 App हमारे मुल्क में ban दिए जिसकी वजह से चीन में बेचैनी बढ़ गई और हमे धीरे धीरे आगे चीनी कॉन्ट्रैक्ट, इम्पोर्ट सब पर ग्राउंड लेवल पर काम करने की जरूरत है। और हमरा फायदा और नुकसान भी देखना होगा सिर्फ भावनाओ में ना बहे दिमाग से काम ले, " सीढिया उन्

CORONA... (घर वापसी)

CORONA... ( घर वापसी ) ' इस शहर में मज़दूर जैसा कोई दर बदर नहीं , जिसने सबके घर बनाये उसका कोई घर नहीं ...'                                                                हजारो लाखो लोगो का वापस अपने मुलुक  ( गाँवों ) की तरफ पैदल , साइकिल पर , चोरी छुपे , भूखे - प्यासे कई दिनों तक भीड़ की शकल में जाना . आने वाले दिनों में कोई बड़ी महामारी की वजह न बने . पर इन लोगो की भी मज़बूरी है वो बता रहे है नहीं गए तो भूख से मर जायेगे और फिर कम से कम घर वालो के सामने तो मरेंगे . सरकार अपनी तरफ से पूरी कोशिस कर रही है पर साधन तो है जितने है और लोग अनगिनत . शायद यही वजह रही होगी की ट्रैन को पूरी तरह बंद नहीं किया गया होगा . पर यह वक़्त सरकार पर सवाल उठाने का नहीं है की उसने राहुल गाँधी के तीन महीने से ट्विटर पर ट्वीट कर चेताया जा रहा था या फिर विदेश से आने वाली फ्लाइट पर क्यों रोक नहीं लगाए या क्यों विदेश से आने वालो की स्क्रीनिंग नहीं की