"इल्म हासिल करने के लिए चीन भी जाना पड़े तो जाओ" कहा से शुरू करू कहा से नहीं कुछ समाज नहीं आ रहा. करीब करीब सभी राज्यों में स्कूल शुरू हो गए है एक तरफ बच्चो में ख़ुशी है तो दूसरी तरफ अभिभावक को मनो बहुत सुकून मिल गया लेकिन यह ख़ुशी स्कूल जाने पर काफूर हो गयी जब स्कूल मैनेजमेंट की तरफ से पिछला बकाया और इस साल का हिसाब जोड़ कर परचा हाथ में दिया गया ओर तो ओर जब माननीय कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया . Covid 19 से पहेले हम मंदी की मार झेल रहे थे और फिर पिछले दो साल काम के क्या हालत है किसी से नहीं छिपे है.अब सभी को गवर्नमेंट स्कूल सही लग रहे है पहेले याद नहीं आया जब स्टेटस दिखाने के लिए होडा होड़ में इंग्लिश मध्यम में दाखिला दिलवाया. और अब गुरुकुल, मदरसा और आश्रम की बाते करने लगे है "का वर्षा जब कृषि सुखाने" स्कूल की कुछ अपनी मजबूरियां भी है टीचर्स की सैलरी, बैंक की किस्त, रखरखाव इत्यादि पर दूसरी ओर क्या टीचर्स को भी 85% सैलरी दी गई. जिस तरह से Covid से पहले स्कूल चल रहे थे क्या उसी तरह से इनका खर्चा चल रहा था ? जिस तरह सरकार चाहे वह केंद्र सरकार हो या राज्य
' हमारे बाद इस महफिल में अफ़साने बयां होंगे, बहारें हमको ढूंढेंगी न जाने हम कहां होंगे ' दिलीप साहब द्वारा कहा गया यह शेर बिल्कुल सही है क्योंकि 'किसी के आने या जाने से जिंदगी नहीं रुकती बस जीने का अंदाज बदल जाता है' और दे जाता है एक खालीपन का एहसास जो कभी नहीं भरता । दिलीप कुमार या युसूफ खान 'नाम में क्या रखा है' शेक्सपियर ने कहा था। सही भी है क्योंकि अगर गुलाब को किसी और नाम से पुकारे तो क्या इतनी खुशबू नहीं देगा ? दिलीप कुमार का बचपन का नाम मुहम्मद यूसुफ खान था। 11 दिसंबर 1922 को पेशावर मैं पैदा हुए जो कि उस वक्त हमारे मुल्क का हिस्सा था आखिरी सांसे 7 जुलाई 2021 को शहंशाह ए जज्बात ने मुंबई के हिंदुजा हॉस्पिटल में ली ली और हम सब को छोड़ कर अपने रब ए हकीकी से जा मिले 'इन्ना लिलाहि वा इन्ना इलेहि राजेउन' अपनी उम्र के सेंचुरी के सिर्फ 2 वर्ष पहले यानी 98 की उम्र में चले गए ठीक उसी तरह जिस तरह सर डॉन ब्रैडमैन अपनी आखिरी पारी में जीरो पर आउट हो गए 'कुल्लू नफसीन जैकतुल मौत' यानी हर नक्श को मौत का मजा चखना है ना एक सेकंड पहले ना एक सेकंड बा