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स्कूल चले हम

"इल्म हासिल करने के लिए चीन भी जाना पड़े तो जाओ" कहा से शुरू करू कहा से नहीं कुछ समाज नहीं आ रहा. करीब करीब सभी राज्यों में स्कूल शुरू हो गए है एक तरफ बच्चो में ख़ुशी है तो दूसरी तरफ अभिभावक को मनो बहुत सुकून मिल गया लेकिन यह ख़ुशी स्कूल जाने पर काफूर हो गयी जब स्कूल मैनेजमेंट की तरफ से पिछला बकाया और इस साल का हिसाब जोड़ कर परचा हाथ में दिया गया ओर  तो ओर  जब माननीय कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया . Covid 19 से पहेले हम मंदी की मार झेल रहे थे और फिर पिछले दो साल काम के क्या हालत है किसी से नहीं छिपे है.अब सभी को गवर्नमेंट स्कूल सही लग रहे है पहेले याद नहीं आया जब स्टेटस दिखाने के लिए होडा होड़ में इंग्लिश मध्यम में दाखिला दिलवाया. और अब गुरुकुल, मदरसा और आश्रम की बाते करने लगे है "का वर्षा जब कृषि सुखाने"                  स्कूल की कुछ अपनी मजबूरियां भी है टीचर्स की सैलरी, बैंक की किस्त, रखरखाव इत्यादि पर दूसरी ओर क्या टीचर्स को भी 85% सैलरी दी गई. जिस तरह से Covid  से पहले स्कूल चल रहे थे क्या उसी तरह से इनका खर्चा चल रहा था ?  जिस तरह सरकार चाहे वह केंद्र सरकार हो या राज्य