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दिलीप साहब (11 दिसंबर 1922, 7 जुलाई 2021)

' हमारे बाद इस महफिल में अफ़साने बयां होंगे, बहारें हमको ढूंढेंगी न जाने हम कहां होंगे ' दिलीप साहब द्वारा कहा गया यह शेर बिल्कुल सही है क्योंकि  'किसी के आने या जाने से जिंदगी नहीं रुकती बस जीने का अंदाज बदल जाता है' और दे जाता है एक खालीपन का एहसास जो कभी नहीं भरता ।  दिलीप कुमार  या युसूफ खान 'नाम में क्या रखा है' शेक्सपियर ने कहा था।  सही भी है क्योंकि अगर गुलाब को किसी और नाम से पुकारे तो क्या इतनी खुशबू नहीं देगा ? दिलीप कुमार का बचपन का नाम मुहम्मद  यूसुफ खान था। 11 दिसंबर 1922 को पेशावर मैं पैदा हुए जो कि उस वक्त हमारे मुल्क का हिस्सा था आखिरी सांसे 7 जुलाई 2021 को शहंशाह ए जज्बात ने मुंबई  के हिंदुजा हॉस्पिटल में ली ली और हम सब को छोड़ कर अपने रब ए हकीकी से जा मिले 'इन्ना लिलाहि वा इन्ना इलेहि राजेउन'  अपनी उम्र के सेंचुरी के  सिर्फ 2 वर्ष पहले यानी 98 की उम्र में चले गए ठीक उसी तरह जिस तरह सर डॉन ब्रैडमैन अपनी आखिरी पारी में जीरो पर आउट हो गए  'कुल्लू नफसीन जैकतुल मौत' यानी हर नक्श को मौत का मजा चखना है ना एक सेकंड पहले ना एक सेकंड बा